भारत में वक्फ संपत्तियों को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। अब सरकार द्वारा प्रस्तावित वक्फ (संशोधन) विधेयक ने इस विवाद को फिर से तूल दे दिया है। इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य वक्फ संपत्तियों का पारदर्शी और सही तरीके से प्रबंधन करना है, लेकिन कुछ मुस्लिम संगठन इसे धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप बताकर इसका विरोध कर रहे हैं। क्या यह विरोध सच में एक चिंता है या केवल राजनीति का हिस्सा है? आइए इसे समझते हैं।
- धार्मिक उत्पीड़न का डर, राजनीति का हथकंडा
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और अन्य मुस्लिम संगठनों ने इस विधेयक को “धार्मिक अधिकारों पर हमला” कहा है। उनका कहना है कि सरकार वक्फ संपत्तियाँ छीनने जा रही है। लेकिन यह दावा पूरी तरह से गलत और आधारहीन है।
सच यह है कि भारत में वक्फ संपत्तियाँ अक्सर भ्रष्टाचार, अवैध कब्जों और गलत इस्तेमाल का शिकार रही हैं। कई बार इन संपत्तियों को सस्ते दामों पर निजी कंपनियों को दे दिया गया है या इन्हें सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया गया। अगर वक्फ बोर्ड का काम सही होता, तो इस विधेयक से इतना डर क्यों? क्या यह डर इसलिए है क्योंकि यह कानून भ्रष्टाचार पर कड़ी नजर रखने वाला है?
- पारदर्शिता और सुधार की जरूरत
भारत में वक्फ संपत्तियाँ हजारों करोड़ रुपये की हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, वक्फ बोर्डों के पास करीब 6 लाख एकड़ से भी ज्यादा ज़मीन है, लेकिन इसका बहुत हिस्सा ठीक से प्रबंधित नहीं किया जाता। कई संपत्तियाँ अवैध कब्जे में हैं और कई वक्फ अधिकारी खुद इन संपत्तियों को गलत तरीके से बेचने में शामिल होते हैं।
सरकार का कहना है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों की बेहतर निगरानी और प्रबंधन सुनिश्चित करेगा, ताकि इन्हें सही इस्तेमाल किया जा सके। क्या पारदर्शिता लाना गलत है? अगर कोई गलत तरीके से इन संपत्तियों का इस्तेमाल कर रहा है, तो क्या उसे सुधारने की जरूरत नहीं है? विरोध करने वाले इस सवाल का जवाब नहीं देते।
- धार्मिक संपत्तियों पर दोहरा व्यवहार
मुस्लिम संगठन वक्फ संपत्तियों पर सरकारी निगरानी को धार्मिक हस्तक्षेप कह रहे हैं, लेकिन वे भूल जाते हैं कि हिंदू और ईसाई धार्मिक ट्रस्ट पहले से ही सरकार की निगरानी में आते हैं। मंदिरों के ट्रस्ट सरकार द्वारा संचालित होते हैं, और उनका वित्तीय हिसाब-किताब सरकार को देना पड़ता है। फिर वक्फ बोर्ड को इस नियम से क्यों अलग रखा जाए? क्यों मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों को सरकारी निगरानी से बाहर रखा जाए?
यह दोहरा व्यवहार सवाल खड़ा करता है। हिंदू मंदिरों की संपत्तियों पर सरकार का नियंत्रण है, लेकिन जैसे ही वक्फ संपत्तियों की बात आती है, इसे “धार्मिक अधिकारों पर हमला” कहा जाता है। क्या धार्मिक पारदर्शिता सिर्फ हिंदुओं के लिए जरूरी है?
- राजनीति और डर फैलाना
यह साफ है कि वक्फ (संशोधन) विधेयक के खिलाफ विरोध का असली कारण धार्मिक भावना नहीं, बल्कि राजनीति है। AIMPLB और अन्य संगठनों को डर है कि अगर सरकार ने वक्फ बोर्डों की गतिविधियों की जांच शुरू कर दी, तो उनके घोटाले और गड़बड़ियां सामने आ जाएंगी। इसलिए वे इसे धार्मिक अधिकारों से जोड़कर मुस्लिम जनता को गुमराह कर रहे हैं।
इसके अलावा, विपक्षी दल भी इस मुद्दे को राजनीतिक रूप से भुनाने में लगे हैं। कई राजनीतिक पार्टियां इस विधेयक को एक “सांप्रदायिक एजेंडा” बताकर अल्पसंख्यकों को डराने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि यह कानून मुसलमानों के खिलाफ नहीं, बल्कि उनके ही भले के लिए है। अगर वक्फ संपत्तियाँ सही तरीके से इस्तेमाल होंगी, तो इसका फायदा मुस्लिम समुदाय को ही होगा।
- विरोध क्यों? सही है या गलत?
वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध पूरी तरह से भ्रमित करने और राजनीति की वजह से हो रहा है। यह विधेयक किसी भी धार्मिक अधिकार को नहीं छीनता, बल्कि यह यह सुनिश्चित करता है कि वक्फ संपत्तियाँ सही तरीके से और पारदर्शी तरीके से उपयोग हों। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, उन्हें खुद से सवाल करना चाहिए—क्या वे धार्मिक अधिकारों की रक्षा कर रहे हैं, या भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं?
अगर मुस्लिम समुदाय अपनी धार्मिक संपत्तियों की असल सुरक्षा चाहता है, तो उसे इस विधेयक का समर्थन करना चाहिए। पारदर्शिता से डर क्यों? अगर सब कुछ सही है, तो सरकार की निगरानी से कोई परेशानी क्यों? इस विधेयक का विरोध करना केवल भ्रष्टाचार और गलत प्रबंधन की रक्षा करना है, न कि धर्म की।