आज पोप फ्रांसिस के निधन की खबर सामने आई है। इस समाचार के बाद यह लगभग निश्चित माना जा रहा है कि भारत सरकार अन्य देशों की भांति राष्ट्रीय शोक की घोषणा करेगी और राष्ट्रीय ध्वज झुकाकर सम्मान प्रकट करेगी। यह एक परंपरा रही है कि जब विश्व के किसी प्रमुख धार्मिक या राजनीतिक नेता का निधन होता है, तो भारत उनके सम्मान में औपचारिक संवेदना प्रकट करता है। लेकिन इसी पंक्ति में जब बात आती है हिंदू धर्म के सर्वोच्च गुरु जगद्गुरु शंकराचार्य की, तब यह संवेदनशीलता, यह सम्मान और यह औपचारिकता अचानक अदृश्य हो जाती है।
यह कोई भावनात्मक शिकायत मात्र नहीं है, बल्कि वर्षों से बार-बार देखे गए एक सुनियोजित व्यवहार का प्रमाण है। 2022 में जब जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के ब्रह्मलीन होने की खबर आई, तब भारत सरकार ने न तो राष्ट्रीय शोक की घोषणा की, न ही झंडा झुकाया गया और न ही कोई केंद्रीय स्तर पर श्रद्धांजलि का औपचारिक वक्तव्य आया। यह उस गुरु के साथ हुआ, जिन्होंने न केवल वैदिक परंपरा को जीवित रखा, बल्कि वेदों, उपनिषदों और भारतीय दर्शन को आधुनिक समाज में व्याख्यायित करने का अनूठा कार्य किया।
फरवरी 2018 में शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती (कांची कामकोटि पीठ) दिवंगत हुए। उनके निधन पर भी कोई राष्ट्रीय सम्मान या शोक दिवस नहीं घोषित किया गया।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। लेकिन यह धर्मनिरपेक्षता केवल बहुसंख्यक हिंदू समाज के संतों और संस्थाओं की उपेक्षा के लिए ढाल बन गई है। जब किसी अन्य धर्म के प्रमुख की मृत्यु होती है, तो पूरा तंत्र संवेदनशील हो उठता है।
भारत सरकार ने पूर्व में कई अवसरों पर राष्ट्रीय शोक की घोषणा की और झंडा आधा झुकाकर श्रद्धांजलि अर्पित की:
- 2005 में पोप जॉन पॉल द्वितीय के निधन पर भारत सरकार ने एक दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया और झंडा झुकाया।
- 2014 में सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन (दाऊदी बोहरा समुदाय) के निधन पर महाराष्ट्र सरकार ने सरकारी कार्यक्रम रद्द किए और राजकीय श्रद्धांजलि दी।
- 2022 में ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के निधन पर भारत सरकार ने एक दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया और झंडा झुकाया।
- 2023 में इरानी राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी की हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु पर भारत ने राष्ट्रीय शोक घोषित किया।
- 2024 में यूएई के राष्ट्रपति शेख खलीफा बिन जायद अल नाहयान के निधन पर भी राष्ट्रीय शोक मनाया गया।
लेकिन क्या आपने कभी सुना कि आदि शंकराचार्य परंपरा के किसी प्रमुख आचार्य के लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय ध्वज झुकाया हो? नहीं। ये वही परंपरा है जिसने भारतीय संस्कृति को हजारों वर्षों तक जीवित रखा, धर्म के चार मठ स्थापित किए, सनातन मूल्यों की रक्षा की, और समाज को आध्यात्मिक आधार प्रदान किया।
इस पक्षपातपूर्ण रवैये से यह सवाल उठना स्वाभाविक है, क्या भारत का धर्मनिरपेक्षता केवल एक दिखावा है? क्या यह केवल अल्पसंख्यक तुष्टीकरण का माध्यम बन गया है, जहाँ बहुसंख्यक संस्कृति और उसके संतों को ‘मेजॉरिटी’ होने के नाम पर निरंतर उपेक्षा झेलनी पड़ती है?
सरकारों का दायित्व होता है कि वे किसी भी धर्मगुरु को उनके योगदान के अनुसार सम्मान दें। शंकराचार्य केवल एक संन्यासी नहीं होते, वे धर्म और दर्शन के ऐसे स्तंभ होते हैं, जिन पर भारतीय चिंतन की पूरी संरचना खड़ी होती है। उनकी मृत्यु केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती, वह एक युग का अंत होती है।
आज जब पोप के लिए राष्ट्रीय ध्वज झुकाने की बात हो रही है, तो यह प्रश्न उठाना आवश्यक है, क्या भारत सरकार शंकराचार्य जैसे महापुरुषों को कभी उस स्तर का सम्मान देगी ? या फिर हम केवल विदेशियों और अन्य मतों के प्रति संवेदनशील बने रहेंगे, और अपनी ही संस्कृति के स्तंभों को मौन उपेक्षा के अंधकार में छोड़ देंगे?
भारत को अपनी आत्मा को जीवित रखना है, तो उसे अपने मूल, अपने संतों और अपनी परंपरा को सम्मान देना ही होगा। नहीं तो हमारी धर्मनिरपेक्षता, केवल एक खोखला आवरण बनकर रह जाएगी, जिसके भीतर पक्षपात, तुष्टीकरण और ऐतिहासिक उपेक्षा की गूंज सुनाई देगी।