मराठों ने कितनी बार दिल्ली और लाल किले पर कब्जा किया?

18वीं शताब्दी में जब मुग़ल साम्राज्य मात्र एक खोखला ढांचा बन चुका था, उस समय भारत की असली शक्ति और गौरवशाली पहचान मराठा साम्राज्य के हाथों में थी। दिल्ली, जो कभी मुग़ल सत्ता का केन्द्र हुआ करती थी, वह मराठों के विजय अभियान और सैन्य पराक्रम के सामने झुक चुकी थी। मराठों ने केवल दिल्ली पर कब्जा ही नहीं किया, बल्कि लाल किले में बैठाए गए मुग़ल सम्राट को अपनी छत्रछाया में रखकर नाममात्र का शासक बना दिया। मुग़ल सम्राट अब सत्ता के प्रतीक मात्र थे, जबकि असली शासन मराठाओं के हाथों में था।

1. मराठों का दिल्ली में पहला प्रवेश – 1737 का अभियान

1737 में पेशवा बाजीराव प्रथम ने मुग़ल साम्राज्य की राजधानी दिल्ली के द्वार तक अपने घुड़सवारों की गूंज पहुंचा दी। उनकी सेना इतनी तेज और रणनीतिक रूप से शक्तिशाली थी कि मुग़ल शासन हिल उठा।
हालाँकि इस अभियान में पूर्ण रूप से लाल किले पर अधिकार नहीं हुआ, पर यह संदेश पूरे भारत में फैल गया कि दिल्ली अब मराठा शक्तियों की पहुँच से बाहर नहीं रही।

2. दिल्ली पर वास्तविक नियंत्रण – 1752 से 1760 तक

1752 में मुग़ल सम्राट अहमद शाह ने मराठाओं से रक्षा हेतु समझौता किया और बदले में दिल्ली की सत्ता का नियंत्रण उन्हें सौंप दिया।
मल्हार राव होल्कर, रघुनाथ राव और अन्य मराठा सेनापतियों ने मुग़लों को दिल्ली की गद्दी पर बैठाया तो सही, पर वे अब केवल नाममात्र के सम्राट रह गए थे।
सभी निर्णय, कर प्रणाली, सैन्य गतिविधियाँ – सब पर मराठाओं का नियंत्रण था।

3. शाह आलम द्वितीय और मराठा संरक्षण – 1771 की पुनर्स्थापना

1761 की पानीपत की अस्थायी हार के बाद भी मराठाओं ने शीघ्र ही अपनी शक्ति पुनः स्थापित की।
1771 में माधवराव पेशवा ने मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय को फिर से दिल्ली की गद्दी पर बैठाया, लेकिन यह सत्ता केवल एक प्रतीक थी।
लाल किला और दिल्ली की वास्तविक रक्षा, प्रशासन और नीति-निर्माण की शक्ति अब मराठा पेशवाओं के हाथों में थी।

4. लाल किले पर मराठा प्रभाव और मुग़ल केवल प्रतीक

लाल किला, जो कभी मुग़ल साम्राज्य की भव्यता का प्रतीक था, अब मराठा प्रशासन की निगरानी में था।
मुग़ल सम्राट की भूमिका एक प्रतीकात्मक मुखिया की रह गई थी।

मराठा सेनाओं की मौजूदगी और उनके राजनीतिक निर्णयों ने यह सुनिश्चित कर दिया कि दिल्ली पर अब वास्तविक नियंत्रण हिंदवी स्वराज्य का है।

5. मुस्लिम आक्रमणों के विरुद्ध मराठा प्रतिरोध

अहमद शाह अब्दाली जैसे क्रूर मुस्लिम आक्रमणकारियों ने जब भारत को लूटने और हिंदू संस्कृति को रौंदने का प्रयास किया, तो मराठा योद्धाओं ने उन्हें बार-बार चुनौती दी।
हालाँकि पानीपत की तीसरी लड़ाई में हार हुई, पर वह अंतिम नहीं थी।
1761 के बाद भी मराठाओं ने न केवल फिर से दिल्ली पर अधिकार किया, बल्कि भारत को इस्लामी कट्टरता से बचाने का प्रयास जारी रखा।

मुग़ल साम्राज्य – मराठा साम्राज्य के अधीन एक नाममात्र सत्ता

इतिहास के जिस सत्य को पाठ्यपुस्तकों और वामपंथी लेखकों ने छिपा दिया, वह यह है कि मुग़ल साम्राज्य 18वीं शताब्दी में समाप्त हो चुका था।
वास्तविक सत्ता अब मराठाओं के हाथों में थी। मुग़ल सम्राट केवल मराठा संरक्षण में जीवित एक नाममात्र शासक बनकर रह गया था।

दिल्ली और लाल किले पर बार-बार विजय प्राप्त करके मराठाओं ने यह सिद्ध किया कि भारत में शक्ति, नेतृत्व और स्वाभिमान का केंद्र अब बदल चुका है। यह युग मराठाओं की महाशक्ति का युग था, न कि कोई ‘मुग़लिया सल्तनत’।

मराठा सत्ता की महिमा और हिंदवी स्वराज्य का गौरव

मराठा साम्राज्य ने दिल्ली को केवल राजनीतिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आत्मिक रूप से पुनर्जीवित किया।
उन्होंने मुग़ल सत्ता को नियंत्रण में लेकर, भारत में हिंदू नेतृत्व का मार्ग प्रशस्त किया।

दिल्ली की दीवारों ने मराठाओं की घोड़ों की टापें सुनी थीं, और लाल किले ने उनकी छत्रछाया में खड़ा मुग़ल सम्राट देखा था।

यह इतिहास, गर्व का इतिहास है – मराठा पराक्रम और हिंदू स्वाभिमान का इतिहास है।

इतिहास के पन्नों में यह सच्चाई गहराई से छुपा दी गई है कि मुग़ल दिल्ली पर राज नहीं कर रहे थे, वे मराठों के संरक्षण में रह रहे थे। मुग़लों को सुरक्षा, राजनीतिक वैधता और शासन का आधार मराठों से मिलता था।

मराठा साम्राज्य उस युग का सबसे शक्तिशाली राजनीतिक, सैन्य और सांस्कृतिक संगठन था जिसने न केवल मुग़लों को अपनी छाया में रखा, बल्कि भारत को एक बार फिर हिंदू नेतृत्व के अंतर्गत एकजुट करने का साहसिक प्रयास किया।

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